ख्वाहिशों की मौत-7

मां कहां गए मामा जी.....आपने जो लेने भेजा था, लेकर आ गया,  लेकिन गए कहां आखिर???? मैंने खेत तरफ जाते देखा था। दिनेश और आगे कुछ बोल पाता, इसके पहले ही जैसे लक्ष्मी सब भाप गई हो। तुरंत जवाब दिया, तुम्हारी मार्कशीट लेने खेत गए हैं.................. और कुछ नहीं....

और कुछ सुनना हो तो वह भी बोलो साहब.... अफ़सर क्या हुआ, अब मां-बाप की जासूसी भी करेंगे क्या, तुम्हें नहीं पता या मेरे मुंह से सुनना चाह रहे हो.... गए होगे..... कम से कम थोड़ी मान मर्यादा तो है और कभी कबार जीजा साले अगर साथ चले भी जाए तो, जब मैं कुछ नहीं बोली तो तुम्हें जवाब चाहिए। कोई बहक तो नहीं आए हो ,या ऐसा भी नहीं कि कोई मेरे पति या भाई को दूसरा छोड़ने आया हो। पूरा गांव जानता है कि चौधरी की बैठक सिर्फ है उसके जीजा याने मेरे पति के साथ है ,और कोई इस लायक ही नहीं.........

और आज पूछ लिए तो ठीक, दोबारा हिम्मत ना करना पूछने की,अफसर तुम दुनिया के लिए होंगे, हमारे लिए नहीं और ताउम्र याद रखना मेरी छोड़ो अगर मर भी गई ना तो भी मेरी तस्वीर के सामने भी भाई और पति के खिलाफ कभी कुछ मत बोलना समझ गए। लक्ष्मी का गुस्सा और पति और भाई के प्रति इतना प्रेम देखकर दिनेश को तुरंत अपनी गलती का एहसास हो गया और दोनों हाथ जोड़कर बस करो मां........ गलती हो गई, नहीं कहूंगा। अब ऐसा,मैंने तो बस ऐसे ही.......... हां चल रहने दे, दोबारा मत कहना और वह बड़े हैं,  तू तो बचपन से जानता है दोनों को, खैर छोड़ मैंने तेरे लिए महाराष्ट्रीयन मौसी की बासुंदी बनाई है। चल खाले, पुरा चार  लीटर दूध लगा है। पड़ोसियों को भी मना कर दिया। चलो अच्छा है भाई को भी बहुत पसंद है। सही दिन आए हैं।

हां..... हां.........सही बात है। अब चौधरी के इतने बुरे दिन आ गए कि बहन भी जीजा की तरह कंजूस होते चली है। लगता चौधरी ने आते हुए सुन लिया था। लक्ष्मी ने सकपकाकर जवाब दिया,अरे नहीं भैया....... ऐसे ही..... तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे तुम्हारे जीजा ने कभी किसी चीज से मना किया होगा। अरे भाई इतना अच्छा तो पति दिलाये हो......... धन्यवाद आपका कि जब से घर आई  हो, यहां क्या होना है। हर चीज मुझ पर निर्भर होता है तो फिर खाने-पीने की क्या बात............ और फिर यह घर मुझसे पहले तो आपका ही था। भाई हमसे पहले आना जाना है आपका यहाँ....... हां यह बात ऒर है कि, घर में बासुंदी सबसे पहले हमें ही खिलाई जाये I और अब दोबारा ऐसा न बोलना न सोचना, ज्यादा बुरा लगे तो हमारे स्वामी जैसे चांदी का सिक्का थाली में रख जाना। अरे बस करो.......क्या सुबह से सबकी खिंचाई करने में लगे हो। मैंने थोड़ा सा क्या पूछा, मुझे कि मामा कहां गए तो मुझे भी सुना दिया। बेचारे मामा की भी खिंचाई कर रहे हो। बीच में ही चौधरी ठोकते हुए.....दिनेश बेटा बहन हैं मेरी, चाहे जो बोले.... जब तेरे बाप की हिम्मत नहीं है कि बीच में बोले तो तू कौन है भाई????? सुनकर जैसे लक्ष्मी ने अपने आपको गौरवान्वित अनुभव किया और बोली सुन लिया, अब अपनी बासुंदी पर ध्यान दें I और भाई और पति को लाकर के कुछ खाने को दिया और फिर अपने आप में मग्न होकर अपने काम में लग गई।

दिनेश के पिता को तो शायद जैसे सारे जमाने का गौरव प्राप्त हो गया है I पत्नी का प्रेम, चौधरी का प्यार और बेटे का अनुशासन देखकर वह फूला न समा रहा था। या एक पल के लिए तो उसके आंखों की नमी भी देखकर भी जाना जा सकता था, जिसे सिर्फ चौधरी ही भाप पाया I जाते समय उसने अपनी बहन के पैर छुए। दिनेश को आशीर्वाद दिया और उसके पिता को गले लगाकर धीरे से कान में कहा, रोया मत कर.... तेरी आंख में आंसू अच्छे नहीं लगते और फिर फिक्र क्यों करता है, चौधरी साला है तेरा.... उड़ीसा है हि कितनी दूर..... विदेश में भी होता तो साथ-साथ चले जाते.... तब भी चले जाते हैं और चिंता मत करना, अपने पहचान के कुछ बड़े अफसर भी है वहां, कुछ तकलीफ नहीं होगी और वहाँ खुली खदान हैं  चिंता मत कर।

दिनेश के पिता ने जैसे रुंधे हुए गले से उसे ऐसे विदा किया जैसे कोई पिता अपनी बेटी को विदा करता है......क्योंकि बेटी के बिदाई  के समय हर पिता को एक आत्मविश्वास होता है कि उसका मान बढ़ाएगी और उसके हर सीख का पालन करेगी। ठीक इसी तरह दिनेश के पिता ने चौधरी की आंखों में झांका...... ना जाने कितने अनगिनत सवाल किए और चौधरी  ने बिना कहे कितने ही सवालों के जवाब दे दिए I चौधरी जानता था कि उसके मित्र की स्थिति सामान्य नहीं है और खुद भी मन में चिंतित था लेकिन बयां नहीं कर सकता था।

बहुत रोकने के पश्चात भी उसकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदे बरबस ही लुढ़कने को हुई तभी वह पलट कर तेजी से घर की ओर निकल पड़ा। उसकी चाल से साफ समझ आ रहा था कि आंसुओ ने उसकी आंखों को ढक दिया है, और वह बरबस ही देखे हुए रास्ते पर चले जा रहा था। थोड़ी दूर जाकर उसने अपने आप को संभाला और आंसू पोछने के लिए हाथ बढ़ाएं ही थे कि हाथ में आए हुए अचानक कपड़े को देख उसने सकपकाकर पीछे देखा......... पोंछ लो आंसू भैया.... मैं जानती थी कि बिना मेरे भाई के मेरे पति को कोई और नहीं समझ समझ सकता। लेकिन ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकती।  डरती  हूँ कि तुम्हारी दोस्ती को नजर ना लग जाए, ऐसे ही सब का ख्याल रखना............. मिठाई घर भुल आये थे सो देने आई I घर जाकर सुरभि भाभी को या यूँ कहूं मेरी प्यारी ननद जिससे मेरा दोनों रिश्ता है...को दे देना। चौधरी ने मुस्कुराते हुए लक्ष्मी के सिर पर हाथ रखा और कहा वाकई अब तू बड़ी हो गई है लगता है, अच्छा चल ख्याल रख उसका और अपनी भी, और चिंता मत कर बाकी मैं सब देख लूंगा, घर की ओर चल पड़ा। लक्ष्मी उसे दूर जाते तक निहारती रही। शेरू भी उसे ना जाने कहां तक छोड़ आया.........

क्रमशः......

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5 Comments

Rupesh Kumar

19-Dec-2023 09:20 PM

V nice

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Shnaya

19-Dec-2023 11:17 AM

Nice one

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Alka jain

19-Dec-2023 10:46 AM

Nyc

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